न जाने क्या-क्या देख लिया
तुमने चाँद में
था ही नहीं जो वहाँ
मेरे पुरखों ने देखी-
वो चरखे वाली बुढ़िया
और कतते सूत की डोरी
सच बोला करता था दादा
जैसे
वह प्यारा ‘बाबा‘ कवि
जिसने चाँद में रोटी देखी
बेषक,
चाँद में न बुढ़िया
न सम्वत
न रोटी
फिर भी-
उन्होंने जो देखा
वह मेल खाता है इस धरती से
जो जन्माती व जिन्दा रखती है
-धरती के लोगों को
जिसके कंठ से पृथ्वी के सारे वृक्ष एक साथ कविता पाठ करते थे : मिगुएल
हर्नान्देज़
-
मिगुएल हर्नान्देज़ ऐसा कवि नहीं था , जैसा हम अक्सर अपने आसपास के कवियों के
बारे में जानते-सुनते हैं. उसका जीवन और उसकी कवितायेँ , दोनों के भीतर
संवेदना, अनु...
9 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
चांद का यह अनोख रूप हमेशा याद रहेगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चाँद भी अपने रंग दिखाता है कभी रोटी .कभी किसी का चेहरा नजर आता है ..अच्छी लगी आपकी यह रचना ने अरूप दिखा चाँद का ..
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