इच्छाओं का
गट्ठर समेटते
दिन के सारे पल
आते हैं
रात के शामियाने में
सपनों की बारात लेकर।
भोर
सांझ की
विदाई के साथ
दरख्तों की
टहनियों पर
रात की हवालात में
खामोश आवाजें
अंधेरे की
सलाखें तोड़कर
छेड़ेगी
द्रुतगति में
भोर का राग।
किरण
आकाश में
किरण
आकाश में
टिमटिमाते नक्षत्रों की जगह
बेहतर है बन जाना
सुबह की पहली किरण और मिट जाना
पसरते उजास के आगोश में।
आग
आग
बुझ चुके अलाव के कोने में
छिपी चिंगारी
बनी जो मौन साधक सी-आग
देखो उसे तुम तो खेल रहे हो
नींद में
अवचेतन के कोलाहल से।
2 टिप्पणियां:
meena bhaai ....aapko blog ko padhkar bahut hi prassnannata hui ...bahut achha laga ki koi meena bhaai ..bhi is kshetra me pryasrat hai ...shabdo ke is suhaane safar me aaj se main bhi aapake sath hoon ..is umeed se ki safar shyad kuchh asaan ho ...filhaal is rachna ke liye badhaaiyaan .!!!
http://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html
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